ये कैसी हवा है आसमाँ धुंधला गया है।
ऐसे वक़्त में न जाने इन्सां कहाँ गया है?
क्यों कोई किसी के दुःख में भी खुश होता है?
क्यों अट्टहास गूंजता है जब सारा जग रोता है?
क्यों सबके मन में एक पापी से मन का घर है?
क्यों मनहूस सा अब हर मोड़, हर मंज़र है?
क्यों भूल गए हैं सब बातें पुरानी?
क्यों सपनों में आती है खूनी कहानी?
क्यों राम और रहीम अब जुदा जुदा हैं?
क्यों दिल से दूर अब बैठे ख़ुदा हैं?
क्यों हम जो सुन रहे उसपे ही बस यकीन होता?
क्यों अंतर हमारा कहीं दूर ,चुपके से रोता?
क्यों ग़म में भी हम ग़म का हैं फरमान लाते?
क्यों झूठे हो रहे हैं, दिल के होते थे जो नाते?
न सुबह-ए-रौशनी है, न शाम-ए-आरज़ू है।
क्यों मनहूसियत से मुल्क मेरा करता वज़ू है?
क्यों सहर-ए-ज़िन्दगी अब दूर लगती?
क्यों अपनी ख्वाहिश, अब मन में ही मजबूर लगती?
क्यों रातों के अंधेरों में मेरा मन है रोता?
जो ये हो रहा है, आखिर क्यों है होता?
उन मासूम आँखों नें तो कुछ देखा नहीं था,
उन फ़ूल से हाथों नें ज़हर फेका नहीं था।
उन कलियों के पैरों ने अभी चलना था सीखा,
उन नाज़ुक से होंठों पे था किस्सा ज़िन्दगी का।
कोई कैसे उस गुलिस्तां में भी ग़ुस्ताख़ हो जाए?
कोई कैसे बच्चों पे यूँ नापाक हो जाए?
ये आलम हर तरफ हैं, हर जगह आंसू हैं बहते।
हम आप भी देखो न हैं चुप चाप सहते।
अरे ये जानवर जो जागता है, हम सब में है।
इसे खुद से जुदा करना ही हर मज़हब में है।
मज़हब कोई हो,बस इंसानियत सिखाता है।
हर पथिक को स्याह रात में,सूरज दिखाता है।
तो क्यों हम अपने ही मज़हब को यूँ बदनाम करते हैं?
इंसानियत है जो उसे नीलाम करते हैं।
वो जो क़त्ल करता है, वो भी हम में से है,अपना भाई है।
लोचन विहीन है, समझता नहीं की आगे गहरी खाई है।
उसे सम्भाल लो समझा दो इंसानों के जैसे ,
नहीं उसपे बरस जाओ हैवानों के जैसे।
अगर हम सौ को मारेंगे हज़ार और आएंगे।
हर बार ये वहशी दास्ताँ सबको सुनाएंगे।
हैवान को इंसान ही इन्सां बनाता है,
हैवान तो हैवानियत में सब भूल जाता है।
उनके मन में भी तुम ज़िन्दगी का ज्ञान भर दो।
उन्हें फिर से मेरे रहबर , इंसान कर दो।
फिर न बमों का शोर होगा, न होंगी गोलियां।
न खेली जाएंगी सड़कों पे ख़ूनी होलियाँ।
फिर आब-ओ-हवा में प्यार की खुशबू घुली होगी।
जो रात है ना, वो रौशनी से धुली होगी।
अभी तक कि तुम्हारी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक। करुणा रस से भरी। ईश्वर तुम्हारी जितनी करुणा सभी मे भरे, तो शायद तुम्हे ये कविता लिखनी न पड़े।
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Very well written
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